मृदा अपरदन (Soil Erosion) एवं मृदा संरक्षण (Soil Conservation)

मृदा अपरदन (Soil Erosion)

  • मृदा के अपरदन को 'रेंगती हुए मृत्यु' कहा गया है। 
  • हिमालय के उत्तरी, बंगाल तथा असम के क्षेत्र में झूम कृषि प्रणाली अधिक प्रचलित है। 
  • अनुमानत: भारत में लगभग 8 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र जल तथा वायु अपरदन से प्रभावित है। (लगभग एक चौथाई)
  • झूम कृषि प्रणाली मध्य प्रदेश में ढाहया, हिमालय में खील, और पश्चिमी घाट पर कुमारी कहलाती है। 
  • भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, असम सर्वाधिक अपरदन प्रभावित क्षेत्र है। 
  • उत्तर प्रदेश में आगरा, मथुरा, इटावा आदि जिलों में चंबल व यमुना के कछारी भागों में अवनालिका अपरदन के कारण भूमि बंजर हो गई है।  अकेले इटावा में ही 48000 हेक्टेयर बंजर भूमि स्थित है। 
  • अनुमानत: गंगा नदी प्रतिवर्ष 30 करोड़ टन मिट्टी बंगाल की खाड़ी में जमा करती है। 
  • शिवालिक श्रेणी में मृदा अपरदन अधिक हुआ है। शिवालिक से उतरने वाली नदियां पंजाब तथा हरियाणा में भारी मात्रा में रेत बहा कर लाती हैं ऐसी नदियों को 'चो' कहा जाता है। 




मृदा संरक्षण (Soil Conservation)

  • मिट्टी में खारेपन की समस्या भी मृदा संगठन को प्रभावित कर रही है। नदी घाटी सिंचाई परियोजनाओं के अंतर्गत मध्यम व गहरी काली मिट्टियो के क्षेत्र में यह संकट सबसे विकराल रूप धारण किए हुए हैं। 
  • 25 सेंटीमीटर से कम वार्षिक वर्षा वाले भू-भाग मरुस्थल कहे जाते हैं। भारत में 12.13  प्रतिशत अर्ध शुष्क मरुस्थल के अंतर्गत है। 
  • भारत सरकार द्वारा स्थापित केंद्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड ने देश के विभिन्न भागों में मृदा संरक्षण के लिए अनेक योजनाएं बनाई है। यह योजनाएं जलवायु की दशाओं, उच्चावच के लक्षणों तथा लोगों के सामाजिक व्यवहार पर आधारित है। 
  • मृदा संरक्षण के कुछ महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात उपाय निम्नलिखित है -

    1.     वन रोपण विशेष रूप से नदी द्रोणियो के ऊपरी भाग में। 
    2.     आद्र प्रदेशो में अवनालिक का अपरदन और मरुस्थलीय और अर्ध मरुस्थलीय प्रदेशों में पवन अपरदन रोकने के लिए अवरोधों का निर्माण। 
    3.     बाढ़ सिंचाई के स्थान पर सिंचाई का फुहारा और टपकान विधियों का प्रयोग। 
    4.     समूच रेखीय जुताई  और मेड बंदी। 
    5.     जैव खादों का अधिकाधिक उपयोग। 

  • थार मरुस्थल पश्चिमी राजस्थान के 16 जिलों में 3.17 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इसका विस्तार अर्ध शुष्क मैदान की ओर हो रहा है। प्रसार के निम्न कारण है-
    1.      पशुचारण 
    2.      वन विनाश 
    3.      तीव्रर्जन वृद्धि 
    4.      भूमिगत जलस्तर में गिरावट 
    5.      अकाल सुखा 
    6.      क्षारिणयकरण 





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