The Extremist Phase of Indian Independence Movement|भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का उग्रवादी चरण: 1905-1919
The Extremist Phase of Indian Independence Movement |
प्रमुख नेता
- बाल गंगाधर तिलक: "भारतीय अशांति के जनक" के रूप में जाने जाने वाले तिलक का प्रसिद्ध नारा "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा" ने कई लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने प्रत्यक्ष कार्रवाई की वकालत की और जनता को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- बिपिन चंद्र पाल: बंगाल के प्रमुख नेता, पाल स्वदेशी (आत्मनिर्भरता) के उपयोग और ब्रिटिश सामानों के बहिष्कार के प्रबल समर्थक थे।
- लाला लाजपत राय: "पंजाब के शेर" के रूप में जाने जाने वाले राय एक भावुक नेता थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उग्र राष्ट्रवाद के उदय के कारण
- अंग्रेजी राज्य के सही स्वरूप की पहचान -भारतीयों द्वारा यह महसूस किया जाना के ब्रिटिश शासन का स्वरूप शोषणात्मक है तथा वह भारत के आर्थिक प्रगति के स्थान पर उपलब्ध संसाधनों का शोषण करने में लगी हुई है।
- भारतीयों के आत्मविश्वास तथा आत्म सम्मान में वृद्धि।
- शिक्षा में विकास का प्रभाव- इसके फलस्वरुप भारतीयों में जागृति आई तथा बढ़ी बेरोजगारी में वृद्धि के लिए भारतीयों ने अंग्रेजों को उत्तरदाई ठहराया।
- अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव- तत्कालीन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय घटनाओं ने यूरोप की अजयता के मिथ को तोड़ दिया। इन घटनाओं में प्रमुख है
- एक छोटे से देश जापान का आर्थिक महाशक्ति के रूप में अभ्युदय।
- इथोपिया के इटली पर विजय
- ब्रिटेन की सेनाओ को गंभीर क्षति पहुंचाने वाला बोआर का युद्ध
- जापान की रस पर विजय १९०५
- विश्व के अनेक देशों के राष्ट्रवादी क्रांतिकारी आंदोलन
- बढ़ते हुए पश्चिमीकरण के विरुद्ध प्रतिक्रिया
- उदारवादियों के उपलब्धियां से असंतोष
- लॉर्ड कजन की प्रतिक्रियावादी नीतियां जैसे -कोलकाता कॉरपोरेशन अधिनियम १८९९, कार्यकाल गोपनीयता अधिनियम १९०४, भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम १९०४, एवं बंगाल का विभाजन १९०५।
- जुझारू राष्ट्रवादी विचारधारा
- एक प्रशिक्षित नेतृत्व
उग्रवादियों के सिद्धांत
- ब्रिटिश शासन से घृणा जनसमूह की शक्ति एवं ऊर्जा में विश्वास
- स्वराज मुख्य लक्ष्य
- प्रत्यक्ष राजनीतिक के भागीदारी एवं आत्म त्याग की भावना में विश्वास
- भारतीय संस्कृति एवं मूल्य में विश्वास
- भारतीय समारोह के आयोजन के पक्षधर
- प्रेस तथा शिक्षा में विकास के पक्षधर
बंगाल विभाजन 1905
बंगाल विभाजन जो की 1903 में सार्वजनिक हुआ था 1905 में लागू किया गया। बंगाल विभाजन के समय भारत का वाइसराय लॉर्ड कर्जन था। बंगाल विभाजन के पीछे सरकार के वास्तविक मनशा बंगाल को दुर्बल करना था क्योंकि उस समय बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का प्रमुख केंद्र था। बंगाल विभाजन के लिए सरकार ने तर्क दिया कि बंगाल की विशाल आबादी के कारण प्रशासन का सुचारू रूप से संचालन कठिन हो गया है कुछ सीमा तक सरकार का यह तर्क सही था किंतु उनके वास्तविक मनशा कुछ और ही थी। विभाजन के फलस्वरूप सरकार ने बंगाल को दो भागों में विभक्त कर दिया दोनों भाग में पहला भाग में पूर्वी बंगाल तथा असम और दूसरे भाग में शेष बंगाल को रखा गया।
बंगाल विभाजन के तहत बंगालियों को प्रशासनिक सुविधा के लिए दो तरह से विभाजित किया गया
- पहली भाषा के आधार पर इसमें बंगाली भाषा भारती बंगाल में ही अल्पसंख्यक बन गए क्योंकि एक करोड़ 70 लाख लोग बंगाली भाषा बोलते थे जबकि हिंदी और उड़िया बोलने वालों की संख्या 3 करोड़ 70 लाख थी एवं
- दूसरा धर्म के आधार पर क्योंकि पश्चिम बंगाल हिंदू बहुसंख्यक क्षेत्र था जहां हिंदुओं की संख्या कुल 5 करोड़ 40 लाख में से 4 करोड़ 20 लाख थी तथा पूरे बंगाल मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र था जहां कुल आबादी 3 करोड़ 10 लाख में से मुसलमान को आबादी एक करोड़ 80 लाख थी मुसलमान के प्रति प्यार दिखाते हुए कर्जन ने कहा कि ढाका नए मुस्लिम बहुल प्रांत की राजधानी बन सकता है क्योंकि इसमें मुसलमान में एकता बढ़ेगी जो की मुगल शासको के समय में पाई जाती थी
स्वदेशी आंदोलन तथा बहिष्कार आंदोलन
बंगाल विभाजन के विरोध में 7 अगस्त 1905 ई को कोलकाता के टाउन हॉल में स्वदेशी आंदोलन की घोषणा की गई बंगाल विभाजन 16 अक्टूबर 1905 ई को प्रभावी हुआ। इस दिन पूरे बंगाल में शोक दिवस मनाया गया स्वदेशी आंदोलन में "वंदे मातरम", "विभाजन नहीं चाहिए", एवं "बंगाल एक है" आदि नारे लगाए गए |
उदारवादियों का बंगाल विभाजन विरोधी अभियान 1905: उदारवादी जिन्हें बंगाल विभाजन के विरोध अभियान में सक्रिय भूमिका निभाई उनमें सुरेंद्रनाथ बनर्जी ,के० के० मिश्रा एवं पृथ्वीचंद्र राय प्रमुख थे। उदारवादियों ने विरोध स्वरूप जो तरीके अपनाए थे -जनसभाओं का आयोजन, याचिकाएं, संशोधन प्रस्ताव तथा पंपलेट एवं समाचार पत्रों के माध्यम से विरोध।
बंगाल विभाजन के सम्बन्ध में उग्रवादियों की गतिविधियां: बंगाल विभाजन के विरोध में सक्रिय भूमिका निभाने वाले प्रमुख उग्रवादी नेता थे - बाल गंगाधार तिलक, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय एवं अरविंद घोष। विरोध के तरीके : विदेशी वस्तुओं एवं विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, जनसभा का आयोजन एवं उग्र प्रदर्शन, स्वयंसेवी संगठन एवं समितियां का गठन, विरोध प्रदर्शन हेतु परंपरागत, लोकप्रिय त्यौहार और मेलों का आयोजन, आत्मविश्वास या आत्म शक्ति की भावना पर बल, स्वदेशी या राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम, स्वदेशी या भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन, भारतीय संगीत एवं भारतीय चित्रकला को नए आयाम, विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान को प्रोत्साहन, शिक्षा संस्थान, स्थानीय निकायों सरकारी सेवाओं इत्यादि का बहिष्कार।
बंगाल विभाजन का रद्द होना: क्रांतिकारी आतंकवाद के उभरने के भय से 1911 में सरकार ने बंगाल विभाजन रद्द कर दिया।
मुस्लिम लीग 1906
30 दिसंबर 1906 को ढाका के नवाब सलीमुल्लाह खान के निमंत्रण पर सम्मेलन हुआ। नवाब वकार-उल-मुल्क इसके अध्यक्ष थे। इसी सम्मेलन में "अखिल भारतीय मुस्लिम लीग" का उदय हुआ।लीग द्वारा बंगाल के विभाजन का समर्थन किया गया और स्वदेशी आंदोलन का बहिष्कार किया गया। उनके द्वारा अपनी समुदाय की रक्षा एवं मुसलमान के लिए पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की मांग की गई, जिससे हिंदू-मुस्लिम में सामुदायिक भेदभाव उत्पन्न हुआ। लीग का संविधान 1960 में कराची में बना और इस संविधान के अनुसार प्रथम अधिवेशन 1908 में अमृतसर में हुआ, जहां आगा खान को इसका अध्यक्ष बना दिया गया।
कांग्रेस के अधिवेशन कोलकाता 1906
1906 ईस्वी में कोलकाता में कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए धारा भाई नौरोजी ने पहली बार स्वराज की मांग प्रस्तुत की ।
कांग्रेस के अधिवेशन सूरत 1907
स्वदेशी आंदोलन चलाने के तरीकों को लेकर कांग्रेस 1907 ई के सूरत अधिवेशन में उग्रवादी (गरम दल) एवं उदारवादी (नरम दल) नामक दो दलों में विभाजित हो गई। इस सम्मेलन की अध्यक्षता रासबिहारी बोस ने की थी। उदारवादी स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन केवल बंगाल तक की सीमित रखना चाहते थे तथा वे केवल विदेशी कपड़ों और शराब का बहिष्कार किए जाने के पक्ष रहे थे। उग्रवादी स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को न केवल पूरे बंगाल अपितु देश के अन्य भागों में भी चलाये जाने तथा इसमें विदेशी कपड़ों एवं शराब के साथ सभी सरकार संस्थाओं, शिक्षा संस्थान, नयायालिक, व्यावसायिक सभाओं, सरकारी सेवावो तथा नगर निगम इत्यादि के बहिष्कार का मुद्दा भी सम्मिलित किए जाने की मांग कर रहे थे।
मार्ले-मिंटो सुधार 1909
- केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषद में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि। गैर सरकारी निर्वाचित सदस्यों की संख्या अभी भी नामात्र एवं बिना चुने हुए सदस्यों की संख्या से कम थी। मुसलमान के लिए पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की व्यवस्था।
- निर्वाचित सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता था। इस प्रकार भारत में पहली बार चुनाव प्रणाली प्रारंभ हुई। व्यवस्थापिका व्यवस्थापिका सभाओं के अधिकारों में वृद्धि की गई। सदस्यों को आर्थिक प्रस्ताव पर बहस करने, उनके विषयों में संशोधन प्रस्ताव रखना, कुछ विषयों पर मतदान करने, प्रश्न पूछने, साधारण प्रश्नों पर बहस करने तथा सार्वजनिक हित में प्रस्ताव को प्रस्तुत करने का अधिकार दिया गया।
- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य को नियुक्त करने की व्यवस्था।
- उक्त सुधारो के पीछे सरकार की मनशा थी कि राष्ट्रवादियों को आपस में विभाजित कर दिया जाये, धार्मिक पक्ष एवं मुसलमान को लालच देकर सरकार के पक्ष में कर लिया जाए।
होमरूल लीग आंदोलन (1915-16)
होमरूल लीग आंदोलन प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात उत्पन्न हुई परिस्थितियों में से एक प्रभावशाली प्रतिक्रिया के रूप में प्रारंभ हुआ। आयरलैंड के होमरूल लीग के तर्ज पर इसे भारत में एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने प्रारंभ किया। होम रूल लीग का उद्देश्य स्वशासन की अवधारणा से भारतीयों को परिचित करना था करना था।
- बाल गंगाधर तिलक ने प्रशासन प्राप्ति हेतु मार्च 1916 ई को पुणे में होम रूल लीग की स्थापना की।
- एनी बेसेंट ने सितंबर 1916 ईस्वी में मद्रास में होम रूल लीग को स्थापना की।
- जॉर्ज अरुणडाले को लीग का सचिव बनाया।
कांग्रेस का लखनऊ 1916
- उग्रवादी पुने कांग्रेस में सम्मिलित हुए
- कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग के मध्य समझौता
- कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग का संयुक्त घोषणा पत्र
- कांग्रेस द्वारा मुस्लिम लीग के पृथक प्रतिनिधित्व की मांग स्वीकार की गई
मांटेग्यू घोषणा /अगस्त डिक्लेरेशन 1917
उग्रराष्ट्रावाद की महत्त्वपूर्ण घटनाएं-
- स्वदेशी आंदोलन के अवसर पर ही रविंद्र नाथ ठाकुर ने अपना प्रसिद्ध गीत "अमर सोनार बांग्ला" लिखा। बाद में यही गीत बांग्लादेश का राष्ट्रगीत बना।
- बाल गंगाधर तिलक पहले कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने देश के लिए कई बार जेल की यात्रा की।
- प्लेग के समय की जादतियो से प्रभावित होकर पुणे के चापेकर बांधुओ (दामोदर एवं बालकृष्ण) ने प्लेग अधिकारी रैंड एवं एयर्स्ट की हत्या कर दी।
- बंगाल में क्रांतिकारी विचारधारा को वरिंदर कुमार घोष एवं भूपेंद्र नाथ दत्त ने फैलाया। 1905 में वरिंदर कुमार घोष ने "भवानी मंदिर" नामक पुस्तिका लिखी जिसमें क्रांतिकारी कार्यों को संगठित करने के लिए केंद्र बनाने के लिए जानकारी दी गई थी। 1906 ईस्वी में इन दोनों ने मिलकर "युगांतर" नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया।
- बंगाल में पी0 मित्रा ने "अनुशीलन समिति" का गठन किया जिसका उद्देश्य था खून का बदला खून। अनुशीलन समिति की 500 शाखाएं खोली गई। अनुशीलन समिति ने हेमचंद्र को रूस क्रांतिकारियों से बम बनाने की कला सीखने के लिए रूस भेजा।
- महाराष्ट्र में विनायक दामोदर सावरकर ने 1904 ईस्वी में "अभिनव भारत "नामक संस्था स्थापित की। अभिनव भारत संगठन के सदस्य पी० एन० बापट बम बनाने की कला सीखने के लिए पेरिस गए।
- महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आंदोलन उभारने का श्रेय तिलक के पत्र "केसरी" को जाता है। तिलक ने 1893 ईस्वी में गणपति एवं 1895 ईस्वी में शिवाजी उत्सव मनाना प्रारंभ किया।
- वैलेंटाइल शिरॉले ने बाल गंगाधर तिलक को "भारतीय असंतोष का जनक "कहा था।
- महाराष्ट्र के महत्वपूर्ण क्रांतिकारी पत्र "काल" का संपादन परांजपे ने किया।
- प्रफुल्ल चक्की व खुदीराम बोस ने 30 अप्रैल 1908 ई को मुजफ्फरपुर के जज किंग्जफोर्ड की हत्या का प्रयत्न किया। गलती से बम कनेरी के गाड़ी पर गिर गया, जिससे दो महिलाओं की मृत्यु हो गई। चक्की ने आत्महत्या कर ली और खुदीराम बोस को 15 साल की अवस्था में 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई।
- 1905 में लंदन में श्यामजी कृष्ण शर्मा ने "इंडियन होम रूल सोसाइटी" की स्थापना की।
- 1 जुलाई 1909 ई को मदनलाल ढींगरा ने विलियम कर्जन वाइली को गोली मारकर हत्या कर दी। 16 अगस्त 1909 को मदनलाल ढींगरा को मृत्युदंड दिया गया।
- 21 दिसंबर 1909 ई को अनंत कन्हारे ने जैक्सन को गोली मार दी।
- वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने 1911 ईस्वी में दिल्ली में भव्य दरबार का आयोजन इंग्लैंड के सम्राट जार्ज पंचम एवं मेरी के स्वागत में किया। इस दरबार में निम्न घोषणाएं हुई
- बंगाल विभाजन को रद्द किया गया
- बंगाली भाषी क्षेत्र को मिलाकर अलग एक प्रांत बनाया गया
- बिहार एक अलग राज्य बना जिसमें उड़ीसा भी शामिल था
- राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा हुई। 1912 ईस्वी में दिल्ली भारत की राजधानी बनी
- कामाघटामारू जापानी जहाज को बाबा गुरुदत्त सिंह 1914 में ने किराए पर लिया था। यह जलयान 351 यात्रियों के साथ 26 सितंबर 1914 को हुगली पहुंचा बजबज नामक बंदरगाह पर जहाज पहुंचने पर तलाशी हुई और संघर्ष हुआ 18 यात्री मार दिए गए और लगभग 25 यात्री घायल हुए।
- 23 दिसंबर 1912 ई को रासबिहारी बोस ने दिल्ली में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका। इसके परिणामस्वरुप 13 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए। इसमें प्रमुख थे -मास्टर अमीचंद, दीनानाथ, अवधबिहारी लाल, बालमुकुंद, बसंत कुमार विश्वास, हनुमंत सहाय एवं बलराज। दीनानाथ दबाव में आकर सरकारी गवाह बन गए और मास्टर अमीचंद, अवधबिहारी लाल, बालमुकुंद एवं बसंत कुमार विश्वास को फांसी दे दी गई।
- 1 नवंबर 1913 ईस्वी में अनेक भारतीयों ने लाला हरदयाल सिंह के नेतृत्व में सन फ्रांसिस्को (अमेरिका) में "गदर पार्टी" की स्थापना की। सोहन सिंह भाक्खना इसके प्रथम अध्यक्ष, लाला हरदयाल इसके प्रथम मंत्री एवं काशीराम कोषाध्यक्ष चुने गए थे।
- 1915 ईस्वी में कांग्रेस सरकार ने "केसरी हिंद" की उपाधि से महात्मा गांधी को सम्मानित किया।
निष्कर्ष
1905 से 1919 तक का उग्रवादी चरण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इसने न केवल स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयासों को और अधिक तेज किया बल्कि भारतीय जनता के बीच एक नई जागरूकता और आत्मनिर्भरता की भावना को भी जन्म दिया। इस चरण ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक ठोस नींव तैयार की और आने वाले वर्षों में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
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