संघ की कार्यपालिका
संविधान के भाग 5 के अनुच्छेद 52 से 78 तक संघ की कार्यपालिका का वर्णन है। संघ के कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रीमंडल तथा महान्यायवादी शामिल होते हैं।
राष्ट्रपति (President Of India)
- अनुच्छेद 52 में यह कहा गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 53 में यह घोषणा की गई है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। राष्ट्रपति, भारत का राज्य प्रमुख होता है।
- संवैधानिक पदक्रम में राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च होता है। राष्ट्रपति, भारत का प्रथम नागरिक है।
- भारत के राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति से गुप्त मतदान द्वारा होता है।
- अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा दिल्ली एवं पुडुचेरी विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है।
- राष्ट्रपति का कार्यकाल पद ग्रहण करने की तिथि से लेकर 5 वर्षों तक होता है।
- एक व्यक्ति जितनी बार चाहे राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित हो सकता है। संविधान में इस पर कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है। (अनुच्छेद 57 )
- कार्यकाल की समाप्ति से पहले राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को दे सकता है। (अनुच्छेद 56(1) क)
- राष्ट्रपति पद ग्रहण करते समय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष शपथ लेता है। (अनुच्छेद 60 )
- संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है। (अनुच्छेद 61)
- राष्ट्रपति पद हेतु उम्मीदवार 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका होना अनिवार्य है।
- राष्ट्रपति ना तो केंद्रीय विधायिका का सदस्य होता है ना ही राज्य विधायिका का।
- अनुच्छेद75 (1) "में यह प्रावधान है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है तथा तत्पश्चात प्रधानमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- राष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न विवादों की जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा की जाती है।
- राष्ट्रपति दोनों सदनों की बैठक बुलाता है, संबोधित करता है, सत्रावसान एवं विघटन करता है (अनुच्छेद 85 )। वह संसद का संयुक्त अधिवेशन भी बुला सकता है, जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है। (अनुच्छेद 108
- वह साहित्य, विज्ञान, कला व समाज सेवा से जुड़े 12 व्यक्तियों को राज्यसभा के लिए (अनुच्छेद 80 ) एवं एंग्लो इंडियन समुदाय से दो व्यक्तियों का लोकसभा के लिए (अनुच्छेद 331 ) मनोनीत करता है। 104वें संविधान संशोधन से एंग्लो भारतीय सदस्यों का नामांकन समाप्त कर दिया गया है।
- धन विधेयक (अनुच्छेद 110 ) राष्ट्रपति की अनुमति के बाद ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- वह केंद्र एवं राज्य के बीच राजस्व के बंटवारे के लिए प्रत्येक 5 वर्ष में "वित्त आयोग" का गठन करता है। (अनुच्छेद 280 )
- वह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
- राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय से किसी विधि पर सलाह ले सकता है परंतु उच्चतम न्यायालय की यह सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है। ( अनुच्छेद 143 )
- अनुच्छेद 72 के अनुसार राष्ट्रपति किसी अपराध के लिए दोष सिध्द ठहराए गए किसी व्यक्ति को क्षमा, उसका विलंबन, विराम या परिहार कर सकता है या दंड में क्षमादान, प्राणदान का स्थगन, राहत और माफी प्रदान कर सकता है।
- अनुच्छेद 53 के अनुसार भारत के रक्षा बलों का सर्वोच्च सेनापति राष्ट्रपति होता है।
- संविधान ने राष्ट्रपति को निम्नलिखित आपातकालीन शक्तियां प्रदान की है-
- राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352
- राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356
- वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360
- अनुच्छेद 123 के अनुसार जब संसद का सत्र न चल रहा हो, तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है।
- संसद के पुनः सत्रारम्भ पर यह अध्यादेश 6 सप्ताह के अंदर दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाना चाहिए अन्यथा यह अध्यादेश समाप्त समझा जाएगा।
- राष्ट्रपति का वेतन 5 लाख प्रति माह और पेंशन 9 लाख वार्षिक है।
- भारत का प्रधानमंत्री एवं संघ के अन्य मंत्री, भारत का महान्यायवादी, भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, राज्यपाल,उपराज्यपाल एवं प्रशासक, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य, मुख्य निर्वाचन आयोग और निर्वाचन आयोग के अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
राष्ट्रपति की वीटो शक्तियां (Veto Power of President of India)
वीटो-लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है रोकना। भारतीय संविधान द्वारा राष्ट्रपति को स्पष्ट्तः वीटो शक्ति प्रदान नहीं की गई है किंतु संवैधानिक परंपरा के रूप में राष्ट्रपति को अधोलिखित तीन प्रकार के वीटो शक्तियां प्राप्त है-
(अनुच्छेद 111)
आत्यांतिक वीटो (Absolute Veto)
जब किसी विधेयक पर राष्ट्रपति अपनी अनुमति नहीं देता है तब विधेयक का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इसे आत्यांतिक वीटो या पूर्ण वीटो कहा जाता है। सामान्यतः इस वीटो शक्ति का प्रयोग गैर सरकारी विधेयकों के संबंध में किया जाता है।
- राष्ट्रपति की आत्यांतिक वीटो शक्ति मंत्रिमंडल के इच्छाधीन होती है।
- सर्वप्रथम इस शक्ति का प्रयोग पीई पीए एसयू विनियोग विधेयक के मामले में, भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा 1954 में किया गया था।
निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto)
अनुच्छेद 111 के तहत राष्ट्रपति किसी विधेयक को (धन विधेयक या तथा संविधान संशोधन विधेयक के सिवाय) संसद को पुनः विचार के लिए वापस कर सकता है। लौटाया जाने का प्रभाव सिर्फ अनुमति का निलंबन होता है क्योंकि संसद द्वारा पुनः पारित कर दिए जाने पर राष्ट्रपति अनुमति देने के लिए बाध्य होता है। अतः इसे निलंबनकारी वीटो कहा जाता है।
इस शक्ति का प्रयोग सर्वप्रथम 1991 में राष्ट्रपति वेंकटरमन ने संसद सदस्यों के "वेतन भत्ते तथा पेंशन संशोधन विधेयक" के संबंध में किया था। तत्पश्चात1997 में डॉ के आर नारायण ने "उत्तर प्रदेश एवं बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने" संबंधी प्रस्ताव के संबंध में तथा 2006 में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने "सांसद (अयोग्यता निवारण) संशोधन विधेयक" के संबंध में इस शक्ति का प्रयोग किया था।
पॉकेट वीटो (Pocket Veto)
संविधान के तहत किसी विधेयक पर राष्ट्रपति द्वारा अनुमति देने या ना देने के लिए किसी समय-सीमा का प्रतिबंध नहीं है। अतः जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अपनी अनुमति नहीं देता है या पुनर्विचार के लिए संसद को वापस नहीं करता है, तब वह जेबी वीटो शक्ति का प्रयोग करता है।
इस शक्ति का प्रयोग सर्वप्रथम राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 1986 में "भारतीय डाक संशोधन विधेयक" के संबंध में किया था। ध्यातव्य है कि यह राष्ट्रपति द्वारा स्वेच्छा से प्रयोग की गई वीटो शक्ति का प्रथम मामला था।