भारतीय संविधान उपराष्ट्रपति (Indian Constitution: Vice-President)

भारत के उपराष्ट्रपति (Vice-President of India)

भारत के उपराष्ट्रपति का पद भारतीय संविधान में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद है। उपराष्ट्रपति, देश के दूसरे सबसे उच्च पदाधिकारी होते हैं, और उनकी भूमिका न केवल राज्यसभा (राज्यों की परिषद) के सभापति के रूप में महत्वपूर्ण है, बल्कि वे राष्ट्रपति के पद को भी संभाल सकते हैं, जब राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ होते हैं। यहाँ उपराष्ट्रपति के पद, उनकी नियुक्ति, कर्तव्यों और अधिकारों के बारे में विस्तृत जानकारी दी जा रही है:

Indian Constitution: Vice-President of India


1. उपराष्ट्रपति का पद (अनुच्छेद 63)

  • संविधान के अनुच्छेद 63 में उपराष्ट्रपति के पद को अनिवार्य रूप से स्थापित किया गया है। यह भारत में एक संवैधानिक पद है, जो राष्ट्रीय शासन व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. राज्यसभा के सभापति के रूप में (अनुच्छेद 64)

  • उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। राज्यसभा भारतीय संसद का ऊपरी सदन है, जिसमें राज्यों के प्रतिनिधि और राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्य शामिल होते हैं।
  • राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति के कर्तव्य:
    • राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना।
    • सदन की कार्यवाही का संचालन करना और यह सुनिश्चित करना कि सदन के नियमों और प्रक्रियाओं का पालन हो।
    • प्रश्न काल, चर्चा, और विधेयकों पर मतदान जैसे कार्यों का संचालन करना।
    • सदन में सदस्यों के बीच किसी विवाद या मुद्दे पर निर्णय लेना।
    • राज्यसभा के किसी भी सदस्य के अनुशासनहीन आचरण के लिए उन्हें सदन से बाहर निकालने का अधिकार।

3. राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यभार (अनुच्छेद 65)

  • यदि राष्ट्रपति का पद किसी कारणवश रिक्त हो जाता है, जैसे कि उनका निधन हो जाता है, वे इस्तीफा दे देते हैं, या किसी अन्य कारण से अयोग्य हो जाते हैं, तो उपराष्ट्रपति कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं।
  • उपराष्ट्रपति तब तक कार्यकारी राष्ट्रपति का कार्यभार संभालते हैं जब तक नया राष्ट्रपति नहीं चुना जाता, या मौजूदा राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को पुनः नहीं संभाल लेते।
  • इस स्थिति में, उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति के सभी अधिकार और कर्तव्य सौंपे जाते हैं।

4. उपराष्ट्रपति का निर्वाचन (अनुच्छेद 66)

  • निर्वाचन प्रक्रिया:
    • उपराष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सभी निर्वाचित और मनोनीत सदस्य शामिल होते हैं।
    • चुनाव प्रोर्पोशनल रिप्रेजेंटेशन (आनुपातिक प्रतिनिधित्व) के आधार पर सिंगल ट्रांसफरबल वोट (एकल हस्तांतरणीय वोट) प्रणाली द्वारा होता है।
    • चुनाव के लिए गुप्त मतदान (सीक्रेट बैलेट) का उपयोग किया जाता है।
    • उम्मीदवार को निर्वाचित होने के लिए साधारण बहुमत प्राप्त करना होता है।
  • कार्यकाल:
    • उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
    • वे पुनः चुनाव के लिए पात्र होते हैं और उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी, नए उपराष्ट्रपति की नियुक्ति तक वे अपने पद पर बने रहते हैं।

5. पद रिक्त होने की स्थिति (अनुच्छेद 67)

  • इस्तीफा: उपराष्ट्रपति अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं, जो कि राष्ट्रपति को संबोधित होता है।
  • हटाने की प्रक्रिया:
    • उपराष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से हटाया जा सकता है।
    • इस प्रक्रिया में, पहले सदन में एक संकल्प पारित किया जाता है, जिसमें बहुमत का समर्थन आवश्यक है, और इसके बाद दूसरे सदन द्वारा इसे विशेष बहुमत से स्वीकृत किया जाता है।
    • हटाने का प्रस्ताव कम से कम 14 दिन पहले नोटिस के रूप में दिया जाना चाहिए।

6. उपराष्ट्रपति की शपथ (अनुच्छेद 69)

  • उपराष्ट्रपति पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति के समक्ष शपथ लेते हैं।
  • शपथ में उपराष्ट्रपति संविधान के प्रति निष्ठा और अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करने की प्रतिज्ञा करते हैं।

7. उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित विवादों का निपटारा (अनुच्छेद 71)

  • यदि उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित कोई विवाद होता है, तो इसका निपटारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है।

8. उपराष्ट्रपति की भूमिका और महत्व

  • संवैधानिक सलाहकार: उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति के रूप में अपनी भूमिका में संसद के महत्वपूर्ण कार्यों का संचालन करते हैं और विधायी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • राष्ट्रीय एकता का प्रतीक: उपराष्ट्रपति भारत की संघीय व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और उनका पद राष्ट्रीय एकता और अखंडता का प्रतीक माना जाता है।
  • सरकार के स्थायित्व में योगदान: उपराष्ट्रपति का कार्यकारी राष्ट्रपति का कार्यभार संभालना यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी स्थिति में सरकार का कार्य सुचारू रूप से चलता रहे।

निष्कर्ष

उपराष्ट्रपति का पद भारतीय राजनीतिक प्रणाली और संविधान में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है। राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका विधायी प्रक्रिया के संचालन में महत्वपूर्ण है, जबकि राष्ट्रपति के कार्यभार संभालने की उनकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय प्रशासन की निरंतरता को सुनिश्चित करती है। इस प्रकार, उपराष्ट्रपति भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं।


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