भारत को एक पर्यावरण स्वास्थ्य नियामक एजेंसी (EHRA) की आवश्यकता
भारत में तेजी से बढ़ती पर्यावरणीय और स्वास्थ्य चुनौतियों को देखते हुए, एक पर्यावरण स्वास्थ्य नियामक एजेंसी (EHRA) की स्थापना की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह एजेंसी जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय क्षरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक विकास से जुड़े मुद्दों को समग्र रूप से संबोधित कर सकती है, जो देश की सतत विकास यात्रा के लिए बेहद जरूरी है।
India Needs an Environmental Health Regulatory Agency in hindi
भारत को EHRA की आवश्यकता क्यों है?
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बढ़ता प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिम:
- भारत में वायु प्रदूषण, विशेष रूप से PM2.5 के उच्च स्तर, श्वसन और हृदय रोगों का प्रमुख कारण हैं।
- औद्योगिक कचरे, अनुपचारित सीवेज और कृषि रसायनों के कारण पानी का प्रदूषण गंभीर जलजनित बीमारियों को बढ़ा रहा है।
- मिट्टी में कीटनाशकों और भारी धातुओं की उपस्थिति कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर रही है।
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जलवायु परिवर्तन के प्रभाव:
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पिछले वर्ष की तुलना में 6% से अधिक बढ़ा है।
- जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य प्रभाव, जैसे गर्मी से होने वाली बीमारियां, मलेरिया और डेंगू जैसी वेक्टर जनित बीमारियां, और मानसिक तनाव, तेजी से बढ़ रहे हैं।
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टुकड़ों में बंटा हुआ शासन:
- वर्तमान में, भारत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य स्तरीय प्रदूषण बोर्ड जैसी संस्थाएं मौजूद हैं, लेकिन इनका ध्यान मुख्य रूप से प्रदूषण नियंत्रण पर है।
- EHRA एक समग्र संस्था के रूप में काम करेगी, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य नीतियों के बीच सामंजस्य स्थापित करेगी।
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आर्थिक प्रभाव:
- पर्यावरणीय क्षरण भारत की जीडीपी का लगभग 8% प्रतिवर्ष खा जाता है।
- EHRA की स्थापना से न केवल ये आर्थिक नुकसान कम होंगे, बल्कि श्रम उत्पादकता में सुधार और स्वास्थ्य सेवा खर्च में कमी आएगी।
EHRA के संभावित कार्य
- नीति समन्वय: प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और सार्वजनिक स्वास्थ्य को एक साथ संबोधित करने वाली समग्र नीतियां बनाना।
- डेटा पर आधारित निर्णय: प्रदूषण, जलवायु प्रभाव और स्वास्थ्य परिणामों पर डेटा एकत्र करना और उसके आधार पर समाधान तैयार करना।
- प्रवर्तन और अनुपालन: पर्यावरणीय कानूनों को लागू करने और स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने पर जोर देना।
- जन जागरूकता: पर्यावरण और स्वास्थ्य के बीच संबंधों पर नागरिकों को शिक्षित करना और स्थायी जीवनशैली को बढ़ावा देना।
- अनुसंधान और नवाचार: प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नई तकनीकों और शोधों को प्रोत्साहन देना।
वैश्विक मॉडलों से सीख
संयुक्त राज्य अमेरिका में EPA (Environmental Protection Agency) और यूरोपीय संघ में EEA (European Environment Agency) जैसी एजेंसियां पर्यावरण और स्वास्थ्य के बीच की कड़ी को सफलतापूर्वक संभाल रही हैं। भारत इनसे सीख लेकर अपनी आवश्यकताओं के अनुसार इन मॉडलों को अपना सकता है।
आगे की राह
EHRA की स्थापना के लिए आवश्यक कदम:
- कानूनी समर्थन: जवाबदेही सुनिश्चित करने और एजेंसी को स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए कानूनी अधिकार प्रदान करना।
- मंत्रालयों के बीच समन्वय: स्वास्थ्य, पर्यावरण और वित्त मंत्रालयों के बीच सहयोग स्थापित करना।
- हितधारकों की भागीदारी: शिक्षा जगत, सिविल सोसाइटी और उद्योगों को इस प्रक्रिया में शामिल करना।
भारत को COP29 जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी जलवायु नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन करने के साथ-साथ घरेलू स्तर पर भी ऐसी मजबूत संस्थाओं की आवश्यकता है। EHRA की स्थापना न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करेगी, बल्कि भारत को सतत विकास के लिए एक वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगी।