संवैधानिक निकाय (Constitutional Body)
संवैधानिक निकाय (Constitutional Body) वह संगठन या संस्थान होता है जिसे किसी देश के संविधान के तहत स्थापित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य संविधान द्वारा दिए गए विशेष कार्यों को संपादित करना और देश के लोकतांत्रिक ढांचे में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखना होता है। ये निकाय स्वतंत्र होते हैं और इनका संचालन संविधान के अनुच्छेदों द्वारा निर्देशित होता है, ताकि किसी भी राजनीतिक दबाव या हस्तक्षेप से इनकी स्वायत्तता बनी रहे।
भारत में संवैधानिक निकायों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि वे सरकार के विभिन्न अंगों के बीच संतुलन बनाए रखने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने का कार्य करते हैं। उदाहरण के तौर पर, भारत का निर्वाचन आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या करने और संवैधानिक मुद्दों पर फैसला लेने का काम करता है।
संवैधानिक निकायों के कुछ मुख्य उद्देश्य होते हैं:
- संवैधानिक प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करना – ये निकाय संविधान में निर्दिष्ट नियमों और प्रावधानों के अनुसार कार्य करते हैं।
- स्वायत्तता और स्वतंत्रता – संवैधानिक निकाय स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं और सरकारी दबाव या हस्तक्षेप से मुक्त होते हैं।
- न्यायिक एवं प्रशासनिक कार्य – ये निकाय न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों के निष्पादन के लिए जिम्मेदार होते हैं, जैसे न्यायपालिका, लोक सेवा आयोग आदि।
इनका गठन इसलिए किया जाता है ताकि देश का प्रशासन और शासन संविधान के अनुरूप और निष्पक्ष ढंग से चले।
1.वित्त आयोग (Finance Commission)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 में अर्ध न्यायिक निकाय के रूप में वित्त आयोग का प्रावधान है। इसका गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पांचवें वर्ष या उससे पहले, जिसे वह आवश्यक समझें, किया जाता है।
वित्त आयोग की संरचना (Composition) और सदस्यों की योग्यता
- वित्त आयोग में अध्यक्ष और चार अन्य सदस्य होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। वे राष्ट्रपति द्वारा अपने आदेश में निर्दिष्ट अवधि के लिए पद धारण करते हैं, फिर वे पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र होते हैं।
- संविधान संसद को आयोग के सदस्य की योग्यता और आयोग के सदस्य का चयन करने के तरीके को निर्धारित करने के लिए अधिकृत करता है।
- अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसे सार्वजनिक मामलों का अनुभव हो तथा चार अन्य सदस्यों का चयन निम्नलिखित में से किया जाना चाहिए-
- एक सदस्य को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना चाहिए या इस पद के योग्य होना चाहिए।
- एक सदस्य को वित्त और लेखा मामलों में अनुभव होना चाहिए, ताकि वह वित्तीय वितरण और संबंधित मामलों पर विशेषज्ञता से सलाह दे सके।
- एक सदस्य को सरकारी वित्त और प्रशासन के क्षेत्र में विशेष ज्ञान होना चाहिए। यह व्यक्ति आयोग के कामकाज में सरकारी नीतियों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है।
- एक सदस्य को अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञान होना चाहिए, ताकि वह आर्थिक विकास, वित्तीय नीतियों और राज्यों के आर्थिक मुद्दों पर सलाह दे सके।
वित्त आयोग के कर्तव्य और कार्य:
- राजस्व का वितरण: केंद्र और राज्यों के बीच आयकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, और अन्य करों के विभाजन के लिए सिफारिशें करना।
- राज्य को अनुदान: केंद्र से राज्यों को दिए जाने वाले अनुदानों की मात्रा और वितरण के बारे में सिफारिशें देना।
- वित्तीय असंतुलन को दूर करना: विभिन्न राज्यों के बीच और केंद्र व राज्यों के बीच वित्तीय असंतुलन को दूर करने के लिए सुझाव देना।
- अन्य कार्य: राष्ट्रपति द्वारा दिए गए अन्य वित्तीय मामलों पर सुझाव देना।
Notes:
- भारत का संविधान वित्त आयोग को भारत में राजकोषीय संघवाद के संतुलन चक्र के रूप में परिकल्पित करता है।
- वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशें केवल सलाहकार प्रकृति की हैं और इसलिए सरकार पर बाध्यकारी नहीं हैं।
- वित्त आयोग का कार्यकाल (Tenure) आमतौर पर 5 वर्षों का होता है।
2.राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC)
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes - NCSC) भारतीय संविधान के तहत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है, जिसका मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जातियों (SCs) के अधिकारों की सुरक्षा करना और उनके कल्याण के लिए उपाय सुझाना है।
अनुच्छेद 338 और पहले आयोग का गठन:
- 1947-1950: संविधान सभा में समाज के कमजोर और वंचित वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs), के अधिकारों और कल्याण की सुरक्षा के लिए चर्चा हुई।
- 1950: भारतीय संविधान लागू हुआ, जिसमें अनुच्छेद 338 के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए एक विशेष अधिकारी (Special Officer) नियुक्त करने का प्रावधान था।
- 1978: अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए एक संयुक्त आयोग का गठन किया गया, जिसे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for SCs and STs) कहा गया।
- 1990: 65वें संविधान संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 338 में संशोधन किया गया, जिससे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए एक संयुक्त संवैधानिक आयोग का गठन हुआ।
- 2003: 89वें संविधान संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 338 में फिर से संशोधन किया गया। इस संशोधन के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए अलग-अलग आयोगों का गठन किया गया:
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC)।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)।
- 19 फरवरी 2004: यह संशोधन प्रभावी हुआ, और इसके साथ ही राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय के रूप में स्थापित हुआ।
आयोग की संरचना (Composition):
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य जिन्हें राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित वारंट द्वारा नियुक्त करते हैं। उनकी सेवा की शर्तें और कार्यकाल भी राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- इनका कार्यकाल 3 वर्ष का होता है या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो। कार्यकाल समाप्ति के बाद इन्हें फिर से नियुक्त किया जा सकता है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) की शक्तियाँ संक्षेप में इस प्रकार हैं:
- जांच और पूछताछ: आयोग अनुसूचित जातियों के अधिकारों के उल्लंघन, सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन, और किसी भी प्रकार के भेदभाव की जांच कर सकता है।
- न्यायिक शक्तियाँ: आयोग को अदालत की तरह साक्ष्य जुटाने, गवाहों को बुलाने, और शपथ के तहत बयान लेने का अधिकार है।
- रिपोर्ट प्रस्तुत करना: आयोग अपनी सिफारिशों और निष्कर्षों की रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, जो संसद में भी रखी जाती है।
- सिफारिशें करना: आयोग अनुसूचित जातियों के उत्थान और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को नीतिगत सिफारिशें कर सकता है।
- संवैधानिक सुधार के सुझाव: आयोग आवश्यकता पड़ने पर अनुसूचित जातियों के लिए संविधान संशोधन या नए कानून बनाने के सुझाव दे सकता है।
- अन्य: जागरूकता फैलाने, प्रचार करने, और अनुसूचित जातियों की समस्याओं की सुनवाई करने का अधिकार भी आयोग के पास है।
आयोग राष्ट्रपति को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। यह जब भी आवश्यक समझे, रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकता है। राष्ट्रपति ऐसी सभी रिपोर्ट को संसद के समक्ष रखता है, साथ ही आयोग द्वारा की गई सिफारिश पर की गई कार्रवाई को स्पष्ट करने वाला एक ज्ञापन भी रखता है। ज्ञापन में ऐसी किसी भी सिफारिश को अस्वीकार करने का कारण भी शामिल होना चाहिए।राष्ट्रपति राज्य सरकार से संबंधित आयोग की किसी भी रिपोर्ट को राज्य के राज्यपाल को भी भेजता है। राज्यपाल इसे आयोग की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई की व्याख्या करने वाले एक ज्ञापन के साथ राज्य विधानमंडल के समक्ष रखते हैं। ज्ञापन में ऐसी किसी भी सिफारिश को अस्वीकार करने का कारण भी शामिल होना चाहिए।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार को अनुसूचित जाति को प्रभावित करने वाले सभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर आयोग के साथ समन्वय करना आवश्यक है।
3.राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग 65वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1990 के पारित होने के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आया।
आयोग की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत संविधान या अन्य कानूनों के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रदान किए गए सभी सुरक्षा उपायों की निगरानी के उद्देश्य से की गई थी।
भौगोलिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अनुसूचित जनजातियाँ अनुसूचित जातियों से भिन्न हैं और उनकी समस्याएँ भी अनुसूचित जातियों से भिन्न हैं।
1999 में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और विकास पर विशेष ध्यान देने के लिए जनजातीय मामलों का एक नया मंत्रालय बनाया गया। यह आवश्यक समझा गया कि जनजातीय मामलों का मंत्रालय अनुसूचित जनजातियों से संबंधित सभी गतिविधियों का समन्वय करे क्योंकि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के लिए यह भूमिका निभाना प्रशासनिक रूप से संभव नहीं होगा।
अनुसूचित जनजातियों के हितों की अधिक प्रभावी ढंग से रक्षा करने के लिए, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए मौजूदा संयुक्त राष्ट्रीय आयोग को विभाजित करके अनुसूचित जनजातियों के लिए एक अलग राष्ट्रीय आयोग स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया था। यह 2003 के 89वें संविधान संशोधन अधिनियम को पारित करके किया गया था जिसमें अनुच्छेद 338 को संशोधित किया गया था और संविधान में एक नया अनुच्छेद 338-ए डाला गया था।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के मुख्य कार्य और शक्तियाँ:
मुख्य कार्य:
- हितों की रक्षा: अनुसूचित जनजातियों (STs) के सामाजिक, शैक्षिक, और आर्थिक हितों की सुरक्षा।
- सरकारी योजनाओं की निगरानी: STs के लिए सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों की समीक्षा।
- अत्याचार की जांच: STs के खिलाफ अत्याचार और भेदभाव की जांच।
- रिपोर्ट प्रस्तुत करना: सिफारिशों की रिपोर्ट राष्ट्रपति को देना।
- शिकायतों का निवारण: STs से संबंधित शिकायतों की सुनवाई और समाधान।
- जागरूकता: STs के अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाना।
मुख्य शक्तियाँ:
- जांच और पूछताछ: STs के मामलों की जांच करने की शक्ति।
- न्यायिक शक्तियाँ: गवाहों को बुलाने और साक्ष्य जुटाने की शक्ति।
- सिफारिशें: STs के कल्याण के लिए सरकार को सिफारिशें देना।
- संवैधानिक सुझाव: जरूरत पड़ने पर संविधान संशोधन या नए कानून के सुझाव।
- विशेष रिपोर्ट: STs के विशेष मुद्दों पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट देना।
- अन्य: जागरूकता फैलाने और जन सुनवाई करने की शक्ति।
4.राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC)
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) का गठन पिछड़े वर्गों (Other Backward Classes - OBCs) के अधिकारों और कल्याण की रक्षा के लिए किया गया है। इसका विकास, संरचना (composition), और कार्य (functions) इस प्रकार हैं:
1. विकास (Evolution of NCBC):
- 1979: भारत सरकार ने मंडल आयोग का गठन किया, जिसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करना और उनकी स्थिति में सुधार के लिए सिफारिशें करना था।
- 1980: मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें OBCs के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की गई थी।
- 1990: मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की गईं, और OBCs के लिए 27% आरक्षण सरकारी नौकरियों और शिक्षा में दिया गया।
- 1992: उच्चतम न्यायालय ने इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ के मामले में OBC आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, और इसके साथ ही सरकार को NCBC जैसे आयोग की स्थापना करने की आवश्यकता महसूस हुई।
- 1993: भारत सरकार ने NCBC का गठन किया। इसे एक वैधानिक निकाय (statutory body) का दर्जा दिया गया था, जो OBCs के लिए सामाजिक न्याय और समता सुनिश्चित करने के लिए कार्य करेगा।
- 2018: संविधान (123वां संशोधन) अधिनियम के माध्यम से NCBC को एक संवैधानिक दर्जा दिया गया। अब इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338B के तहत एक संवैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया है।
2. संरचना (Composition of NCBC):
- अध्यक्ष: आयोग का प्रमुख होता है।
- उपाध्यक्ष: अध्यक्ष की सहायता के लिए नियुक्त किया जाता है।
- तीन अन्य सदस्य: इनमें से कम से कम एक महिला होनी चाहिए।
- सचिव: एक सचिव जो आयोग के प्रशासनिक कार्यों को संभालता है।
5.भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी
- मूल रूप से भारत के संविधान में "भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी" के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया था। बाद में, राज्य पुनर्गठन आयोग (1953-55) ने इस संबंध में एक सिफारिश की। तदनुसार, 1956 के 7वें संविधान संशोधन अधिनियम ने संविधान के भाग XVII में एक नया अनुच्छेद 350-बी जोड़ा।
- भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी होना चाहिए। उसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जानी चाहिए।
- संविधान के तहत भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए प्रदान की गई सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों की जांच करना विशेष अधिकारी का कर्तव्य होगा।
- वह राष्ट्रपति को उन मामलों पर ऐसे अंतराल पर रिपोर्ट देगा जैसा कि राष्ट्रपति निर्देश दे सकते हैं।
- राष्ट्रपति को ऐसी सभी रिपोर्ट संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखनी चाहिए और संबंधित राज्यों की सरकारों को भेजनी चाहिए।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संविधान भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी की योग्यता, कार्यकाल, वेतन और भत्ते, सेवा की शर्तों और हटाने की प्रक्रिया को निर्दिष्ट नहीं करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 350-बी के प्रावधान के अनुसार, भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी का कार्यालय 1957 में बनाया गया था, जिसे "भाषाई अल्पसंख्यकों के आयुक्त" के रूप में नामित किया गया है।
- आयुक्त का मुख्यालय इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में है। बेलगाम (कर्नाटक), चेन्नई (तमिलनाडु) और कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में उनके तीन क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
- आयुक्त को मुख्यालय में डिप्टी कमिश्नर और असिस्टेंट कमिश्नर द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। वह अपने द्वारा नियुक्त नोडल अधिकारियों के माध्यम से राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ संपर्क बनाए रखता है।
- केंद्र स्तर पर आयुक्त अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अंतर्गत आता है। इसलिए वह केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के माध्यम से राष्ट्रपति को वार्षिक रिपोर्ट या अन्य रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
6. चुनाव आयोग (Election Commission)
यह भारत के संविधान द्वारा स्थापित एक स्थायी और स्वतंत्र निकाय है जो देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करता है। संविधान का अनुच्छेद 324 यह प्रावधान करता है कि संसद, राज्य विधानसभाओं, भारत के राष्ट्रपति के कार्यालय और भारत के उपराष्ट्रपति के कार्यालय के चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति चुनाव आयोग में निहित होगी।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग की संरचना (composition) के बारे में विवरण दिया गया है। इसके अनुसार:
- मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner): चुनाव आयोग का प्रमुख होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त का पद एक संवैधानिक पद है, और इसे संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित किया गया है।
- अन्य चुनाव आयुक्त (Election Commissioners): संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति के विवेक पर, एक या अधिक अन्य चुनाव आयुक्त भी नियुक्त किए जा सकते हैं। जब एक से अधिक चुनाव आयुक्त नियुक्त किए जाते हैं, तो सभी आयुक्तों के पास समान अधिकार होते हैं, और सभी निर्णय सामूहिक रूप से लिए जाते हैं।
- क्षेत्रीय आयुक्त (Regional Commissioners): राष्ट्रपति समय-समय पर, जब आवश्यक समझें, क्षेत्रीय आयुक्तों को नियुक्त कर सकते हैं। इनका कार्य विशेष क्षेत्रों में चुनाव प्रक्रिया की निगरानी करना होता है।
नियुक्ति और सेवा शर्तें:
- चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल, उनके वेतन, और सेवा शर्तों का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है।
- कार्यकाल: मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है, या जब तक वे 65 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेते, जो भी पहले हो। यह अवधि उन्हें सुनिश्चित करती है कि वे अपने कार्यकाल के दौरान स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें।
- मुख्य चुनाव आयुक्त को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की जाती है। मुख्य चुनाव आयुक्त को उनके पद से तभी हटाया जा सकता है, जब उन्हें हटाने के लिए वही प्रक्रिया अपनाई जाए, जो एक न्यायाधीश को हटाने के लिए होती है। अन्य चुनाव आयुक्तों को हटाने का अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त की सहमति आवश्यक होती है।राष्ट्रपति द्वारा उसे संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर, या तो साबित कदाचार या अक्षमता के आधार पर हटाया जा सकता है।
चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्तों को समान शक्तियां प्राप्त हैं और उन्हें समान वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएं प्राप्त हैं जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान हैं।
7.संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)
संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission - UPSC) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 से 323 के तहत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है। UPSC का मुख्य कार्य केंद्र सरकार और उसके अधीनस्थ सेवाओं के लिए योग्य उम्मीदवारों की भर्ती करना है।
UPSC /SPSC की संरचना (Composition):
- अध्यक्ष (Chairman): UPSC के प्रमुख होते हैं और इसकी सभी गतिविधियों की देखरेख करते हैं।
- सदस्य (Members): संविधान में निर्धारित है कि UPSC में अध्यक्ष के अलावा अन्य सदस्य भी होंगे। सदस्यों की संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है।
UPSC के मुख्य प्रावधान:
- अनुच्छेद 315:
- संघ और राज्यों के लिए अलग-अलग लोक सेवा आयोगों का प्रावधान करता है।
- संघ के लिए UPSC और प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्य लोक सेवा आयोग का प्रावधान किया गया है।
- संविधान में यह भी प्रावधान है कि संसद के कानून द्वारा दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक संयुक्त लोक सेवा आयोग का गठन किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 316:
- UPSC के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- अध्यक्ष और अन्य सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो।
- अनुच्छेद 317:
- UPSC के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को केवल राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। उन्हें हटाने की प्रक्रिया भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान है।
- अनुच्छेद 318:
- संसद द्वारा UPSC के सदस्यों की नियुक्ति, सेवा शर्तें, और उनकी सेवा के दौरान प्राप्त होने वाले वेतन आदि का निर्धारण किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 319:
- कोई भी व्यक्ति जो UPSC के अध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुआ है, वह भविष्य में किसी भी सरकारी पद के लिए पात्र नहीं होगा। हालांकि, एक सदस्य जो अध्यक्ष नहीं बना, उसे अध्यक्ष बनने के बाद अन्य पद ग्रहण करने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 320:
- UPSC के कार्यों का उल्लेख करता है, जिसमें नियुक्तियों, प्रमोशन, और सिविल सेवाओं में अनुशासनात्मक मामलों पर सरकार को सलाह देना शामिल है।
- अनुच्छेद 321:
- संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह UPSC को अतिरिक्त कार्य सौंप सके।
- अनुच्छेद 322:
- UPSC के सदस्यों और कर्मचारियों का वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से आते हैं।
- अनुच्छेद 323:
- प्रत्येक वर्ष UPSC अपनी गतिविधियों और सरकार को दी गई सलाह के संबंध में एक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, जिसे संसद के समक्ष रखा जाता है।
योग्यता: संविधान में यह भी निर्धारित है कि अध्यक्ष और सदस्यों में से आधे से अधिक सदस्य ऐसे होने चाहिए जिन्होंने केंद्र या राज्य सरकार में कम से कम 10 वर्षों का अनुभव प्राप्त किया हो।
UPSC के कार्य:
- सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन करना, जिसमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), भारतीय विदेश सेवा (IFS), और अन्य केंद्रीय सेवाओं के लिए भर्ती की जाती है।
- साक्षात्कार और भर्ती परीक्षाओं का संचालन।
- सेवा में प्रोन्नति और स्थानांतरण के मामलों में सरकार को सलाह देना।
- अनुशासनात्मक मामलों में सरकार को मार्गदर्शन प्रदान करना।