गैर-संवैधानिक निकाय (Non-Constitutional Bodies)
गैर-संवैधानिक निकाय (Non-Constitutional Bodies) वे संगठन या संस्थान होते हैं जो भारत के संविधान के तहत स्थापित नहीं किए जाते, बल्कि इन्हें कानूनों, सरकारी आदेशों या नीतिगत निर्णयों के आधार पर बनाया जाता है। ये निकाय सरकार की आवश्यकताओं और प्रशासनिक जरूरतों के अनुसार समय-समय पर गठित किए जाते हैं। इनका संविधान में कोई उल्लेख नहीं होता, लेकिन ये प्रशासनिक या सलाहकारी भूमिका निभाते हैं।
गैर-संवैधानिक निकायों का उद्देश्य सरकार के लिए सुझाव देना, नीतियां बनाना, प्रशासनिक सुधार करना और कुछ विशिष्ट कार्यों में सरकार की मदद करना होता है।
क्रमांक | गैर-संवैधानिक निकाय का नाम | गठन का आधार |
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1 | नीति आयोग (NITI Aayog) | कार्यकारी आदेश (2015) |
2 | राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) | मानवाधिकार अधिनियम, 1993 |
3 | केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) | कार्यकारी आदेश (1964), वैधानिक दर्जा (2003) |
4 | केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) | सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 |
5 | राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) | राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 |
6 | राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) | राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 |
7 | राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) | पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 |
8 | केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) | दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 |
9 | राष्ट्रीय विधि आयोग (Law Commission of India) | कार्यकारी आदेश (1955) |
10 | कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) | कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 |
11 | भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) | SEBI अधिनियम, 1992 |
12 | प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) | प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 |
13 | भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) | भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997 |
14 | भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) | भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 |
15 | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) | कार्यकारी आदेश (1969) |
1.राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission - NHRC) भारत में मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए स्थापित एक स्वतंत्र निकाय है। इसका गठन 12 अक्टूबर 1993 को "मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993" (Protection of Human Rights Act, 1993) के तहत किया गया था।
NHRC के मुख्य प्रावधान और संरचना:
संरचना:- अध्यक्ष: NHRC के अध्यक्ष वह व्यक्ति होते हैं, जिन्होंने भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा की हो।
- अन्य सदस्य:
- एक सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश।
- एक उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश।
- दो अन्य सदस्य जिनके पास मानवाधिकारों के क्षेत्र में विशेष ज्ञान और अनुभव हो।
- इसके अलावा, आयोग में कुछ पूर्व अधिकारी भी होते हैं, जैसे राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि।
नियुक्ति:
- NHRC के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और यह नियुक्तियाँ एक चयन समिति द्वारा की जाती हैं जिसमें प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, और संसद के अन्य प्रमुख नेता शामिल होते हैं।
कार्यकाल:
- NHRC के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है या जब तक वे 70 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेते, जो भी पहले हो।
- उन्हें उनके कार्यकाल के दौरान केवल राष्ट्रपति द्वारा ही हटाया जा सकता है, और इसके लिए उचित प्रक्रिया अपनाई जाती है।
कार्य:
- मानवाधिकारों का संरक्षण और संवर्धन।
- मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जांच और सिफारिशें।
- सरकार, न्यायालयों और अन्य संगठनों को मानवाधिकारों के पालन के लिए सलाह देना।
- मानवाधिकारों से संबंधित जानकारी का प्रसार और जागरूकता कार्यक्रम चलाना।
- सरकारी नीतियों, कानूनों और योजनाओं का मानवाधिकार दृष्टिकोण से अध्ययन करना और उनकी समीक्षा करना।
अधिकार और शक्तियाँ:
- NHRC के पास न्यायिक शक्तियाँ होती हैं, जैसे कि समन जारी करना, दस्तावेजों को प्रस्तुत करना, और गवाहों को पेश करना।
- यह आयोग किसी भी व्यक्ति, समूह, या सरकारी संस्था के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की स्वत: संज्ञान लेकर भी जांच कर सकता है।
- आयोग अपनी सिफारिशें सरकार को भेज सकता है, और सरकार को इन्हें मानने के लिए बाध्य किया जाता है, हालांकि आयोग के आदेश अनिवार्य रूप से बाध्यकारी नहीं होते।
रिपोर्ट:
- NHRC को प्रत्येक वर्ष अपनी गतिविधियों और सिफारिशों की एक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपनी होती है, जिसे संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
NHRC का उद्देश्य:
NHRC का मुख्य उद्देश्य भारत में मानवाधिकारों की रक्षा करना और उन्हें बढ़ावा देना है। यह आयोग मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं की निगरानी करता है, इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करता है, और मानवाधिकारों के महत्व को समाज में फैलाने का कार्य करता है।
NHRC के तहत, राज्यों में भी राज्य मानवाधिकार आयोग (State Human Rights Commission - SHRC) की स्थापना की जा सकती है, जो राज्य स्तर पर मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए कार्य करती है।
2.केंद्रीय सूचना आयोग (CIC)
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के तहत भारत में केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission - CIC) की स्थापना की गई है। CIC सूचना के अधिकार के तहत एक स्वतंत्र निकाय है जो नागरिकों को सार्वजनिक अधिकारियों से जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है।
CIC के मुख्य प्रावधान और कार्य:
संरचना (Composition):
- मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner): CIC का प्रमुख होता है।
- सूचना आयुक्त (Information Commissioners): CIC के साथ कुछ अन्य सूचना आयुक्त भी होते हैं, जिनकी संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है।
नियुक्ति:
- मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- उनकी नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा के स्पीकर, और विपक्ष के नेता शामिल होते हैं।
कार्यकाल:
- मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो।
कार्य और शक्तियाँ:
- शिकायतों की सुनवाई: नागरिकों की शिकायतें और अपीलों की सुनवाई करना, जिनमें सूचना प्राप्त करने में असमर्थता, या सूचना के अधिकार के उल्लंघन से संबंधित मामलों की जांच करना शामिल है।
- निर्देश और आदेश: संबंधित सरकारी विभागों को निर्देश देना और आदेश जारी करना कि वे आवश्यक सूचना प्रदान करें।
- सूचना के अधिकार के प्रचार-प्रसार: सूचना के अधिकार के बारे में जागरूकता फैलाना और इसके कार्यान्वयन को प्रोत्साहित करना।
- रिपोर्ट प्रस्तुत करना: CIC अपनी गतिविधियों पर एक वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, जिसे संसद के समक्ष रखा जाता है।
स्वतंत्रता:
- CIC एक स्वतंत्र और स्वायत्त निकाय होता है, जो निर्णय लेने में पूरी स्वतंत्रता का अधिकार रखता है। इसकी सिफारिशें और आदेश संबंधित सार्वजनिक प्राधिकरण के लिए अनिवार्य होते हैं, हालांकि किसी भी आदेश के खिलाफ अपील की जा सकती है।
स्थानीय आयोग:
- CIC की तर्ज पर राज्यों में राज्य सूचना आयोग (State Information Commission) भी स्थापित किए गए हैं, जो राज्य स्तर पर सूचना के अधिकार के मामलों की सुनवाई करते हैं।
CIC का उद्देश्य: CIC का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी पारदर्शी और सुलभ हो, और नागरिकों के सूचना के अधिकार की रक्षा की जा सके। यह आयोग सूचना के अधिकार के उचित कार्यान्वयन को बढ़ावा देने और किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को कम करने में मदद करता है।
3.केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC)
केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission - CVC) भारत सरकार का एक प्रमुख निगरानी और भ्रष्टाचार निवारण निकाय है। इसका गठन 1964 में किया गया था, और इसका उद्देश्य सरकारी संस्थाओं में भ्रष्टाचार को रोकना और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
CVC के मुख्य प्रावधान और कार्य:
संरचना (Composition):
- मुख्य सतर्कता आयुक्त (Chief Vigilance Commissioner): CVC का प्रमुख होता है। इसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- सतर्कता आयुक्त (Vigilance Commissioners): CVC में मुख्य सतर्कता आयुक्त के साथ-साथ अन्य सतर्कता आयुक्त भी होते हैं। इनकी नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
नियुक्ति:
- मुख्य सतर्कता आयुक्त और अन्य सतर्कता आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यह नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा के स्पीकर, और विपक्ष के नेता शामिल होते हैं।
कार्यकाल:
- मुख्य सतर्कता आयुक्त और अन्य सतर्कता आयुक्तों का कार्यकाल 4 वर्षों का होता है या जब तक वे 65 वर्ष की आयु तक नहीं पहुंच जाते, जो भी पहले हो।
कार्य और शक्तियाँ:
- भ्रष्टाचार की जांच: CVC सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार और कदाचार की जांच करता है।
- सिफारिशें: CVC भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों में सिफारिशें करता है और सरकारी विभागों को भ्रष्टाचार निवारण के लिए सलाह देता है।
- निगरानी: CVC विभिन्न सरकारी विभागों और संगठनों में भ्रष्टाचार की निगरानी करता है और सुधारात्मक उपाय सुझाता है।
- प्रशिक्षण और जागरूकता: CVC भ्रष्टाचार निवारण के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और जागरूकता अभियान चलाता है।
- रिपोर्ट: CVC अपनी गतिविधियों और भ्रष्टाचार की जांच के परिणामों पर हर वर्ष एक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, जिसे संसद के समक्ष रखा जाता है।
स्वतंत्रता:
- CVC एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करता है। इसका कार्य भ्रष्टाचार की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करना होता है, और यह कार्यकारी अधिकारियों से स्वतंत्र रहता है।
आवश्यक सुधार और अनुशासनात्मक कार्रवाई:
- CVC सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामलों में अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश कर सकता है, लेकिन अंतिम निर्णय संबंधित विभाग या संस्था द्वारा लिया जाता है।
CVC का उद्देश्य सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है, और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए प्रभावी निगरानी और अनुशासनात्मक उपाय प्रदान करना है।
4.केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI)
केंद्रीय जांच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation - CBI) भारत सरकार की प्रमुख जांच एजेंसी है, जिसका कार्य भ्रष्टाचार, गंभीर अपराध, और अन्य जटिल मामलों की जांच करना है। CBI की स्थापना 1963 में की गई थी और इसे भारत सरकार के अंतर्गत काम करने वाले एक स्वायत्त निकाय के रूप में मान्यता प्राप्त है।
CBI के मुख्य प्रावधान और कार्य:
संरचना (Composition):
- निदेशक (Director): CBI का प्रमुख निदेशक होता है, जो भारत सरकार द्वारा नियुक्त होता है। निदेशक की नियुक्ति भारत के प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाती है और यह एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी होता है।
- अध्यक्ष (Additional Director/Joint Director): निदेशक के अलावा, CBI में विभिन्न अतिरिक्त निदेशक और संयुक्त निदेशक होते हैं जो विभिन्न विभागों की देखरेख करते हैं।
नियुक्ति:
- निदेशक की नियुक्ति भारत के प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाती है। निदेशक की नियुक्ति के लिए चयन समिति में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, और विपक्ष के नेता शामिल होते हैं।
कार्यकाल:
- निदेशक का कार्यकाल 2 वर्षों का होता है, और यह कार्यकाल किसी अन्य विस्तार के बिना होता है।
कार्य और शक्तियाँ:
- जांच: CBI भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध, गंभीर अपराध (जैसे हत्या, अपहरण, और दंगे) और विशेष मामलों की जांच करता है। यह देशभर में किसी भी मामले की जांच कर सकता है, जब मामला राज्य सरकार के अनुरोध पर या सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सौंपा जाता है।
- अन्वेषण और न्यायिक कार्रवाई: CBI न केवल अपराधों की जांच करता है, बल्कि यह अदालत में अभियोजन भी करता है।
- सहयोग और समन्वय: CBI अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग करता है और आपसी समन्वय के माध्यम से मामले सुलझाता है।
- विशेष मामले: CBI को विशेष रूप से जटिल और उच्च-profile मामलों की जांच का काम सौंपा जाता है।
स्वतंत्रता:
- CBI की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए इसे एक स्वायत्त निकाय के रूप में स्थापित किया गया है। हालांकि, CBI को केंद्रीय सरकार के अंतर्गत काम करना होता है और इसका बजट और प्रशासन केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन होता है।
CBI और राज्य पुलिस:
- CBI केवल उन मामलों की जांच करता है जिनमें राज्य सरकारों द्वारा अनुरोध किया गया हो या जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेशित किया गया हो। यह अपने कार्यक्षेत्र में स्वतंत्र रूप से काम करता है, लेकिन राज्य पुलिस की सहायता प्राप्त कर सकता है।
CBI का उद्देश्य है गंभीर अपराधों और भ्रष्टाचार की प्रभावी जांच करना और कानून का शासन सुनिश्चित करना। यह संस्था अपने कार्यों के लिए उच्च मानकों और दक्षता की अपेक्षा रखती है और न्याय के लिए प्रतिबद्ध रहती है।